दिसंबर 1992 में बाबरी ढांचा गिराए जाने के बाद पूरे देश में सांप्रदायिक दंगे भड़क गए थे। अनेक जगहों पर धार्मिक इमारतों को क्षति पहुंचाई गई और इस दौरान अनेक लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। लेकिन दिल्ली की तासीर कुछ ऐसी थी कि इन दंगों के दौरान भी यहां कोई बड़ी वारदात नहीं होने पाई।
पुलिस की सतर्कता और लोगों के आपसी भाईचारे ने इतनी बड़ी घटना के बाद भी अपना धैर्य बनाए रखा। उसी दिल्ली में आज ऐसा क्या हो गया कि लोग एक-दूसरे की जान के दुश्मन बन गए, यह किसी की समझ में नहीं आ रहा है।
दिल्ली पुलिस के रिटायर्ड एसीपी वेद भूषण ने बताया कि जिस इलाके में आज 42 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है, उसी एरिया में 1992 के दंगों के दौरान दीपक मिश्रा डीसीपी पद की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। वे स्वयं भी एक मोर्चे पर तैनात थे। जैसे ही 6 दिसंबर की शाम को विवादित ढांचा गिराए जाने की खबर फैली थी, कुछ जगहों पर लोग आक्रोशित हो गए और उपद्रव करने की कोशिश करने लगे।
उन्होंने बताया कि ऐसी स्थिति में दीपक मिश्रा ने किसी राजनेता या बड़े अधिकारी के आदेश का इंतजार नहीं किया। वे खुद ही अपने जवानों के साथ मोर्चा संभालने के लिए निकल पड़े। उन्होंने तत्कालीन कमिश्नर एमबी कौशल को भी सूचित कर दिया कि वे अपने इलाके में कर्फ्यू की घोषणा कर रहे हैं। इसके साथ ही उन्होंने सभी समुदाय के लोगों के साथ बैठक की और आपसी विश्वास बहाली का काम किया। इसका सीधा परिणाम हुआ कि इस एरिया में दंगे नहीं फैले।
अधिकारी के मुताबिक दिल्ली के कुछ ही इलाकों में कुछ विवाद बढ़ने पाया था, लेकिन पुलिस की सतर्कता से उस परिस्थिति में भी दिल्ली में कोई बड़ा नुकसान नहीं होने पाया। इसके लिए यहां के लोगों के आपसी रिश्ते भी काफी कारगर रहे, जिसके कारण लोगों की आपसी भाईचारे की बात बिगड़ने नहीं पाई।
दिल्ली पुलिस के एक जिम्मेदार अधिकारी के तौर पर काम कर चुके वेद भूषण ने कहा कि हिंसा के पैटर्न को देखते हुए यह समझ आता है कि यह सोची-समझी साजिश का नतीजा है। जिस तरह लोगों के घरों पर पत्थर-पेट्रोल बम और हथियारों की तैनाती की बात सामने आई है, उससे यह समझ आता है कि कुछ लोग माहौल खराब करना चाहते थे। ऐसी हिंसा को पूरी तरह रोक पाना मुश्किल होता है। लेकिन पुलिस की सतर्कता से नुकसान को बहुत कम अवश्य किया जा सकता है।