महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन के बाद उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। अब उनके बेटे आदित्य ठाकरे राज्यव्यापी दौरा कर रहे हैं। आदित्य के दौरे की तस्वीरों में दिख रही भीड़ को उनके और उद्धव ठाके का समर्थन समझा जा रहा है। आदित्य के दौरे में भीड़ की तस्वीरों से भाजपा के खेमे में हलचल देखी जा रही है। बता दें कि शिवसेना-कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) की महाविकास अघाड़ी सरकार से बगावत करने वाले शिवसेना विधायक एकनाथ शिंदे सीएम बन चुके हैं। शिवसेना नेता आदित्य ठाकरे Aditya Thackeray का दौरा, लेकिन शिवसेना किसकी ? शिंदे ने भाजपा के समर्थन से सरकार बनाई है। पूर्व CM देवेंद्र फडणवीस को महाराष्ट्र का डिप्टी सीएम बनाया गया है। शिवसेना ने भाजपा पर विधायकों को तोड़ने के लिए धनबल और केंद्रीय एजेंसियों के इस्तेमाल जैसे संगीन आरोप लगाए हैं। ऐसे में भाजपा और शिवसेना का सीधा टकराव छिपा नहीं है। फिलहाल, एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद शिवसेना किसकी पार्टी रहेगी, इस पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला लंबित है, लेकिन फिलहाल शिवसेना विधायक और पूर्व CM के बेटे आदित्य के दौरे से भाजपा के माथे पर बल जरूर पड़ने लगे हैं।
भाजपा के वॉर रूम में खतरे की घंटी आदित्य ठाकरे के राज्यव्यापी दौरे के संबंध में खबरों के मुताबिक पार्टी के सूत्रों ने रविवार को कहा, आदित्य के दौरे में उमड़ रही भीड़ के कारण महाराष्ट्र भाजपा के वॉर रूम में खतरे की घंटी बज गई है। बता दें कि आदित्य पिछले महीने एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में हुए विद्रोह के बाद शिवसेना में सुधार के लिए राज्य भर में घूम रहे हैं। बता दें कि शिंदे गुट ने महाराष्ट्र की राजनीति में बड़ा बदलाव करते हुए भाजपा से हाथ मिलाया है। शिंदे मुख्यमंत्री बन चुके हैं और शिवसेना पर भी दावा ठोक रहे हैं। अक्टूबर में नगरपालिका चुनाव आदित्य ठाकरे के दौरे से जुड़ी टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा गया कि आदित्य का गर्मजोशी से स्वागत हो रहा है। आदित्य की लोकप्रियता या शिवसेना समर्थकों की भीड़ की खबरों और तस्वीरों ने भाजपा के रणनीतिकारों को मुंबई और ठाणे सहित राज्य भर में होने वाले निकाय चुनावों से पहले सतर्क कर दिया है। बता दें कि अक्टूबर में नगरपालिका चुनाव कराए जाने हैं। ठाकरे के साथ-साथ शिंदे गुट का बड़ा असर दिखने की संभावना है। चुनाव परिणाम भाजपा और शिवसेना गठबंधन की भावी संभावनाओं को भी प्रभावित करेंगे।
जलगांव में आदित्य ठाकरे की सभा आदित्य ने हाल ही में जलगांव जिले के एक गांव पचोरा में पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं को संबोधित किया। यह क्षेत्र वर्तमान शासन में वरिष्ठ मंत्री गुलाबराव पाटिल का राजनीतिक गढ़ माना जाता है। शिवसेना के एक कार्यकर्ता ने जलगांव में आदित्य ठाकरे की सभा के बारे में कहा कि मातोश्री (ठाकरे निवास) में जैसे ही भीड़ उमड़ने की खबरें पहुंचीं, शिवसेना नेतृत्व ने राहत की सांस ली। कार्यकर्ता के मुताबिक आदित्य के समर्थन में पहुंचे शिव सैनिक महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री से मिलने के लिए मंच के करीब पहुंचने के लिए धक्का-मुक्की करते दिखे, जिससे आदित्य और शिवसेना को जनसमर्थन का अंदाजा माना जा रहा है। ‘शिवसेना में विद्रोह’ का जिक्र खबरों के मुताबिक महाराष्ट्र भाजपा के रणनीतिकार इस बात से चिंतित हैं कि उद्धव ठाकरे और आदित्य दोनों ‘शिवसेना में विद्रोह’ का जिक्र करते रहेंगे। उनका आरोप है कि सत्ता की लालसा में कुछ नेता-विधायक शिवसेना से अलग हुए, ये उनकी सत्तालोलुपता दिखाता है। भाजपा इस धारणा को दूर करने की भरसक कोशिश कर रही है कि उसने महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार को गिराने में शिवसेना के ‘गद्दारों’ (देशद्रोहियों) की कोई मदद नहीं की।
‘गद्दार’ नैरेटिव का इस्तेमाल रिपोर्ट्स के मुताबिक शिंदे की नगर निगम चुनावों में गहरी जड़ें जमाने की योजना है। विशेष रूप से एमएमआर क्षेत्र (Mumbai Metropolitan Area) में ‘गद्दार’ नैरेटिव का इस्तेमाल शिवसेना के वोटर्स को एकजुट करने के लिए किया गया। इसे मातोश्री यानी उद्धव ठाकरे की योजना माना गया। इस पर एक भाजपा पदाधिकारी ने कहा कि ठाकरे पिता-पुत्र की जोड़ी ‘खांजीर खुपासाला’ (पीठ में खंजर) की बयानबाजी कर रहे हैं। इसका मुकाबला करने के लिए हमें एक को सुदृढ़ चुनावी रणनीति बनाने की जरूरत है। बकौल भाजपा पदाधिकारी, “मतदाता अक्सर ‘सहानुभूति’ फैक्टर से बहक जाते हैं। इसलिए, मातोश्री ने उद्धव-जी को ‘दलित’ के रूप में पेश करने का प्रयास किया।”
भाजपा के एक बड़े तबके का माननाहै कि बीजेपी शिंदे गुट के वैचारिक सामान को शेयर करे, इसकी आवश्यकता नहीं है। एक भाजपा पदाधिकारी ने कहा, “एकनाथ-जी शिवसेना की हिंदुत्व विरासत का जिक्र करते रहते हैं, जिसे बालासाहेब ठाकरे और आनंद दिघे ने 1990 के दशक में आक्रामक रूप से अपनाया था। भाजपा के पास सबसे लोकप्रिय और भरोसेमंद वोट का आधार प्रधानमंत्री मोदी हैं। हमें अन्य दलों से प्रतीक उधार लेने की जरूरत नहीं। हमें खुद की राजनीतिक पहचान अक्षुण्ण रखनी होगा।” किन मुद्दों पर लड़ रही शिवसेना-भाजपा राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि भाजपा-शिंदे गठबंधन को सुशासन पर ध्यान देना चाहिए। सिंचाई, किसानों को न्यूनतम लाभकारी मूल्य, सड़क और हेल्थ केयर और बिजली जैसे विकास के मुद्दों पर काम करना चाहिए। विशेषज्ञों के मुताबिक शिंदे शासन के समक्ष कई कानूनी और संवैधानिक मुद्दे भी हैं। इनके दूरगामी राजनीतिक परिणाम होंगे। शिंदे की बगावत ने शिवसेना को झकझोरा एमवीए सरकार के पतन के बाद से, ठाकरे और आदित्य ने सेना मशीनरी को सुधारने में ततपरता और कठोरता दिखाई है। शिवसेना में कई लोग सोचते हैं कि एकनाथ शिंदे के विद्रोह ने लगभग सुन्न पड़ी मातोश्री को झकझोर कर रख दिया है।खुद उद्धव ठाकरे जमीनी स्तर के शिवसैनिकों का विश्वास जीतने के लिए शहर भर में शाखाओं का दौरा कर रहे हैं। आदित्य ‘शिव संवाद यात्रा’ (Shiv Samvad Yatra) को धर्मयुद्ध का हिस्सा बताकर दूर के गांवों में सभाओं को संबोधित कर रहे हैं। इस कवायद का मकसद उस लोकप्रिय धारणा को दूर करना है, जिसमें शिवसेना की छवि ‘मुंबई केंद्रित पार्टी’ की बन गई है।